Add To collaction

मधुरालय सुरभित आसव मधुरालय का 4

*मधुरालय*
                *सुरभित आसव मधुरालय का*4
उच्च शिखर गिरिराज हिमालय,
विंध्य-नीलगिरि  गर्वीला।
सब गिरि मिलकर इसे सँवारें-
इसकी धवल उँचाई  है।।
           पंछी के कलरव से पाया,
           इसने भी संगीत  नया।
           चखते अमृत आसव इसका-
           बजती धुन शहनाई  है।।
है ठहराव झील सा इसमें,
सिंधु-जोश-उत्तुंग लहर।
सुख-सुक़ून देता आस्वादन-
प्रिय इसकी मधुराई  है।।
         हुआ अवतरण देव-लोक का,
         इस पुनीत मधुरालय में।
         सुरा-सुंदरी-मेल  अनूठा-
         अति अनुपम पहुनाई है।।
प्यालों की टक्कर लगती है,
वीणा की झंकार सदृश ।
साक़ी के कोमल हाथों की-
अति कोमल नरमाई  है।।
        रस-पराग-मकरंद पुष्प मिल,
         करते मधु-निर्माण प्रचुर।
         ऊपर से भवँरों की गुंजन-
          लगे परम  सुखदाई  है।।
प्रकृति-गीत-संगीत सुहानी,
परम कर्णप्रिय मन भाए।
रस विहीन अति खिन्न हृदय जन-
को मिलती  तरुणाई  है।।
              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                9919446372

   16
6 Comments

Mohammed urooj khan

23-Jan-2024 01:19 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

Reply

Reyaan

22-Jan-2024 01:07 AM

Nice

Reply

Milind salve

21-Jan-2024 08:09 PM

Nice

Reply